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प्लास्टिक : अप्सिस्ट से धन तक

by MANISHANKAR KUMAR
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दशकों पहले लोगों की सुविधा के लिये प्लास्टिक का आविष्कार किया गया लेकिन धीरे-धीरे यह अब पर्यावरण के लिये ही नासूर बन गया है। प्लास्टिक और पॉलीथीन के कारण पृथ्वी और जल के साथ-साथ वायु भी प्रदूषित होती जा रही है। हाल के दिनों में मीठे और खारे दोनों प्रकार के पानी में मौजूद जलीय जीवों में प्लास्टिक के केमिकल से होने वाले दुष्प्रभाव नज़र आने लगे हैं। इसके बावजूद प्लास्टिक और पॉलीथीन की बिक्री में कोई कमी नहीं आई है।

प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक की उत्पत्ति सेलूलोज़ डेरिवेटिव में हुई थी। प्रथम सिंथेटिक प्लास्टिक को बेकेलाइट कहा गया और इसे जीवाश्म ईंधन से निकाला गया था।
फेंकी हुई प्लास्टिक धीरे-धीरे अपघटित होती है एवं इसके रसायन आसपास के परिवेश में घुलने लगते हैं। यह समय के साथ और छोटे-छोटे घटकों में टूटती जाती है और हमारी खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करती है।
यहाँ यह स्पष्ट करना बहुत आवश्यक है कि प्लास्टिक की बोतलें ही केवल समस्या नहीं हैं, बल्कि प्लास्टिक के कुछ छोटे रूप भी हैं, जिन्हें माइक्रोबिड्स कहा जाता है। ये बेहद खतरनाक तत्त्व होते हैं। इनका आकार 5 मिमी. से अधिक नहीं होता है।
इनका इस्तेमाल सौंदर्य उत्पादों तथा अन्य क्षेत्रों में किया जाता है। ये खतरनाक रसायनों को अवशोषित करते हैं। जब पक्षी एवं मछलियाँ इनका सेवन करती हैं तो यह उनके शरीर में चले जाते हैं।
भारतीय मानक ब्यूरो ने हाल ही में जैव रूप से अपघटित न होने वाले माइक्रोबिड्स को उपभोक्ता उत्पादों में उपयोग के लिये असुरक्षित बताया है।
अधिकांशतः प्लास्टिक का जैविक क्षरण नहीं होता है। यही कारण है कि वर्तमान में उत्पन्न किया गया प्लास्टिक कचरा सैकड़ों-हज़ारों साल तक पर्यावरण में मौजूद रहेगा। ऐसे में इसके उत्पादन और निस्तारण के विषय में गंभीरतापूर्वक विचार-विमर्श किये जाने की आवश्यकता है।
वर्तमान स्थिति की बात करें तो

स्थिति यह है कि वर्तमान समय में प्रत्येक वर्ष तकरीबन 15 हज़ार टन प्लास्टिक का उपयोग किया जा रहा है। प्रतिवर्ष हम इतनी अधिक मात्रा में एक ऐसा पदार्थ इकठ्ठा कर रहे हैं जिसके निस्तारण का हमारे पास कोई विकल्प मौजूद नहीं है।
यही कारण है कि आज के समय में जहाँ देखो प्लास्टिक एवं इससे निर्मित पदार्थों का ढेर देखने को मिल जाता है।
पहले तो यह ढेर धरती तक ही सीमित था लेकिन अब यह नदियों से लेकर समुद्र तक हर जगह नज़र आने लगा है। धरती पर रहने वाले जीव-जंतुओं से लेकर समुद्री जीव भी हर दिन प्लास्टिक निगलने को विवश है।
इसके कारण प्रत्येक वर्ष तकरीबन 1 लाख से अधिक जलीय जीवों की मृत्यु होती है।
समुद्र के प्रति मील वर्ग में लगभग 46 हज़ार प्लास्टिक के टुकड़े पाए जाते हैं।
इतना ही नहीं हर साल प्लास्टिक बैग का निर्माण करने में लगभग 4.3 अरब गैलन कच्चे तेल का इस्तेमाल होता है।

प्लास्टिक निर्माण की दर

वैश्विक स्तर पर पिछले सात दशकों में प्लास्टिक के उत्पादन में कई गुणा बढ़ोतरी हुई है। इस दौरान तकरीबन 8.3 अरब मीट्रिक टन प्लास्टिक का उत्पादन किया गया।
इसमें से लगभग 6.3 अरब टन प्लास्टिक कचरे का ढेर बन चुका है, यह और बात है कि इसमें से केवल 9 फीसदी हिस्से को ही अभी तक रिसाइकिल किया जा सका है।
यदि भारत के संदर्भ में बात करें तो यहाँ हर साल तकरीबन 56 लाख टन प्लास्टिक कचरे का उत्पादन होता है। जिसमें से लगभग 9205 टन प्लास्टिक को रिसाइकिल किया जाता है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार, देश के चार महानगरों यथा- दिल्ली में रोज़ाना 690 टन, चेन्नई में 429 टन, कोलकाता में 426 टन और मुंबई में 408 टन प्लास्टिक कचरा फेंका जाता है।
‘द गार्जियन’ में हाल में छपे एक लेख के मुताबिक, दुनिया भर में प्रत्येक मिनट लाखों प्लास्टिक की बोतलें खरीदी जाती हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) 2014 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, हर साल उपभोक्ता वस्तुओं के क्षेत्र में प्लास्टिक उपयोग की कुल प्राकृतिक पूंजी लागत 75 अरब डॉलर है। यह बढ़ते उपभोक्तावाद और प्लास्टिक के बढ़ते उपयोग के साथ और बढ़ेगा।

इस समस्या के निवारण हेतु किये जा रहे प्रयास

दुनिया भर में प्लास्टिक की बोतलों और इससे निर्मित पदार्थों की खपत सबसे अधिक है। इस समस्या की गंभीरता को समझते हुए इस संदर्भ में वैश्विक स्तर पर जागरुकता फैलाई जा रही है साथ ही इसके समाधान हेतु नए-नए विकल्पों की भी खोज की जा रही है।
प्लास्टिक को खत्म करने हेतु एंजाइम

हाल ही में वैज्ञानिकों द्वारा एक ऐसे एंजाइम का निर्माण किया गया है जो प्लास्टिक की बोतलों को अपने आप तोड़ सकता है।
पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार, पर्यावरण प्रदूषण के क्षेत्र में यह एक क्रांतिकारी खोज साबित होगी। संभव है इससे प्लास्टिक प्रदूषण की समस्या का समाधान करने में सहायता मिल सकती है।
2016 में जापान में बेकार पड़े कूड़े के ढेर में उत्पन्न हुए एक जीवाणु द्वारा प्लास्टिक को खाने संबंधी जानकारी मिलने के बाद वैज्ञानिकों द्वारा इस संबंध में कार्य आरंभ किया गया।
यूनिवर्सिटी ऑफ पोस्टमाउथ यूके के शोधकर्त्ता प्रोफेसर जॉन मैक्गेहन के अनुसार, म्यूटेंट एंजाइम प्लास्टिक की बोतलों को तोड़ने में कुछ समय लेता है, जबकि इसके विपरीत समद्र में होने वाली इस प्रक्रिया की तुलना में यह कई गुना तीव्र है।
प्रयोगशाला में किये गए परीक्षण के दौरान इस एंजाइम ने पॉलीएथाइनील ट्रेफ्थालेट (पीईटी) में रासायनिक बदलाव करके उसे उसके मूल घटक में परिवर्तित करने में सफलता हासिल की। यह प्लास्टिक खाद्य व पेय पदार्थों के निर्माण में सर्वाधिक इस्तेमाल होता है।
दुनिया भर में हर मिनट में लगभग 1 मिलियन प्लास्टिक की बोतलें बेची जाती हैं, जबकि इनका सिर्फ 14 प्रतिशत ही रिसाइकिल हो पाता है, शेष को समुद्र में फेंक दिया जाता है जिससे उत्पन्न होने वाले प्रदूषण से न केवल समुद्री जीवों को हानि पहुँचती है बल्कि समुद्री भोजन का सेवन करने वाले लोगों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
इस खोज के लाभ क्या-क्या होंगे ?

मौजूदा समय में प्लास्टिक की रिसाइकिलिंग के बाद उससे चटाई और प्लास्टिक रेशों जैसी कम गुणवत्ता वाली चीज़ें और उत्पाद बनाए जाते हैं।
इस प्रकार इस प्रक्रिया में हमें बाज़ार में दो प्रकार की पीईटी प्लास्टिक मिलती है- पहली है वर्जिन ग्रेड और दूसरी है आर-पीईटी यानी रिसाइकिल की गई पीईटी।
वर्जिन ग्रेड को बनाने में क्रूड ऑयल का इस्तेमाल किया जाता है। इसी प्लास्टिक से बोतलों समेत उच्च गुणवत्ता वाले उत्पाद तैयार किये जाते हैं, जबकि रिसाइकिल किये गए पीईटी से बढ़िया उत्पाद बनाने का अब तक कोई तरीका मौजूद नहीं हो सका है।
यही कारण है कि इस व्यवसाय में लिप्त कंपनियाँ वर्जिन ग्रेड पीईटी का निर्माण करती हैं, जिसमें धन भी अधिक लगता है और पर्यावरण में प्लास्टिक की मात्र में भी वृद्धि होती है।
वैज्ञानिकों द्वारा की गई इस नई खोज के बाद पीईटी बोतलों को रिसाइकिल कर गुणवत्तापरक बोतलों और अन्य उत्पादों का निर्माण किया जा सकता है।
इससे न केवल मौजूदा प्लास्टिक को पुन: इस्तेमाल में लाया जा सकता है, बल्कि नए प्लास्टिक के उत्पादन को भी नियंत्रित किया जा सकता है।दुनिया भर में प्रदूषण की समस्या में दिनोंदिन बढ़ोतरी होती जा रही है। इसमें भी प्लास्टिक एक समस्या है जो सबसे अधिक चिंताजनक है क्योंकि यह एक ऐसा पदार्थ होता है जिसे नष्ट होने में काफी समय लगता है। केवल इतना ही नहीं इसके कारण पानी से लेकर हवा और भूमि सभी प्रदूषित होते हैं। महासागर पर शोध करने वाले डॉ. मार्कस एरिक्सन का कहना है कि हमें प्लास्टिक रिसाइकिलंग के बारे में गंभीरता से सोचना होगा और व्यक्तिगत रूप से भी अपनी ज़िम्मेदारी का निर्वाह करना पड़ेगा, तभी यह धरती सुरक्षित रह सकती है। स्पष्ट रूप से हमें इस दिशा में और अधिक गंभीरता के साथ कार्य करने की आवश्यकता है।

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